आसान सी बातें कहने को भी लफ्ज़ भारी चाहिए
लोहे को लोहे नहीं काटता साहब, धारदार आरी चाहिए।
ये जो भी कहते फिरते हैं कि ग़मो के अँधेरे हैं बहुत
उनसे ये पूछता हूँ कि और कितनी दिवाली चाहिए।।
उसने कहा मेरे मज़हब में नहीं हैं किसी और का बुरा करना
अरे मज़हब किसी और का भी कुछ जुदा नहीं होता।
जो तुमको सिखाए मेरे अज़ीज़ अश्क़ बाँटना
वो खुदा कसम कभी कोई खुदा नहीं होता।।
अरे महसूस करने को तो बस एक ख़्याल काफी हैं
वो खुद ही उठा देता हैं बस एक सव्वाली चाहिए।
लाज़िम हैं चाँदनी ये हर रोज नहीं लगता
उससे पहले अमावस की एक रात काली चाहिए।।
मेरी बातें पढ़ के लोग मुझसे नफरत करने लगे हैं
मुझे खुद से ज़रा सी अब तो थोड़ी वाहवाही चाहिए।
दिल को जला जला के राख कर दिया
इस राख को मंदिर की धूल बनाने वाली चाहिए।।
लोहे को लोहे नहीं काटता साहब, धारदार आरी चाहिए।
ये जो भी कहते फिरते हैं कि ग़मो के अँधेरे हैं बहुत
उनसे ये पूछता हूँ कि और कितनी दिवाली चाहिए।।
उसने कहा मेरे मज़हब में नहीं हैं किसी और का बुरा करना
अरे मज़हब किसी और का भी कुछ जुदा नहीं होता।
जो तुमको सिखाए मेरे अज़ीज़ अश्क़ बाँटना
वो खुदा कसम कभी कोई खुदा नहीं होता।।
अरे महसूस करने को तो बस एक ख़्याल काफी हैं
वो खुद ही उठा देता हैं बस एक सव्वाली चाहिए।
लाज़िम हैं चाँदनी ये हर रोज नहीं लगता
उससे पहले अमावस की एक रात काली चाहिए।।
मेरी बातें पढ़ के लोग मुझसे नफरत करने लगे हैं
मुझे खुद से ज़रा सी अब तो थोड़ी वाहवाही चाहिए।
दिल को जला जला के राख कर दिया
इस राख को मंदिर की धूल बनाने वाली चाहिए।।
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