Tuesday, September 8, 2015

संतान से सुख मिल नहीं सकता, माँ बाप को जो कभी दिया ही नही

बहुत रोज से कुछ लिख रहा था मैं
ना जाने क्यूँ अधूरा सा लग रहा था वही

लगता हैं जो मेरें  हर पल साथ हैं
उसी को ज़रूरी मैं लग रहा था नहीं

मै  भीड़ में उसको खुद से जोड़ के
चल पड़ता था सब कुछ छोड़ के

आसान करने को उसका हर एक सफर
बेपरवाह  हर मुश्किल तोड़ के

वो काबिल हुआ हैं इतना कि यारों
अब लगता हैं उसको मेरी  चाहत  ही नही

मेरे  खून के कतरे को मेरी कसम
पल भर को मेरी जरूरत ही नहीं

मैं अपने पिता को याद करू
कि अपनी नापाक अदाओ को

मैं बुरा हुआ इतना भी क्यूँ
कि हक़ मिला ऐसी सजाओ को

 अपने को सही मान कर मैंने
शायद न कोई गलती थी की

पर गलत उनके साथ किया
 हा वो मेरी बदसलूकी ही थी

जो कहना चाहूँ वो कह भी पाउ
ये मुझ को मुश्किल लगता हैं

बेमतलब सा अब मुझको
ये सारा जीवन लगता हैं

हा जो भी कहा वो गर समझो
अपनों को पूरा मान दो

ज्यादा कुछ इसमें लगता ही नहीं
बस माता पिता को सम्मान दो

प्यार से बढ़कर कोई तोहफा
कभी किसी को मिला ही नहीं

संतान से सुख मिल नहीं सकता
माँ बाप को जो कभी दिया ही नही.......... !!!!










Monday, March 16, 2015

Aaj Fir likh raha hoon

आज फिर लिख रहा हूँ मैं दास्ताँ कोई  पुरानी
झीलों की नगरी में थी एक अजब दीवानी

थोड़ी अलग थी थोड़ी सबके जैसी
कैसी थी तुम जानो मेरी जबानी

अंदाज़ अदाएं ढंग थे ज़ुदा
जुदा थी उसकी हर एक निशानी

मस्त रहकर जीना था सीखा
हर बात थी अपने दिल की मानी

सबके दिलो पे राज़ था उसका
तरीके थे उसके इतने रूमानी

अब बात करे कहानी की अगर
था एक राजा जिसकी थी वो रानी

सुन्दर गठीला बदन था सुगढ़
शहर में ना था उसका कोई सानी

नवाबों से कम न था उसका रुबाब
हर सुंदरी लिए खड़ी थी अपनी जवानी

उसपे फ़िदा हो के उसके ख्वाबों में
खोने लगी वो गुम होने लगी

रातें की काली दिन लाल किये
खुद अपने में वो कम होने लगी

एक दिन मिला मौका  मिलन का उनसे
बस सच करने को सपने  बाट जोहने लगी

इतवार का दिन था अनाथों से मिलने
वो आये उनकी मुरादें पूरी करने

अनाथों का एक ही सहारा था वो
कश्तियों का उनकी किनारा था वो

सीखा था उसने यही अपने पिता से
देने से मिलता हैं सब कुछ यहाँ

बातो को उनकी ही मानता रहा वो
जो कहा उन्होंने किया बस वो

उस रोज़ वो भी विचरण के बहाने
पहुंची वहाँ  दरकिनार कर के  दीवाने

कोशिश की हज़ार कि हो आमना सामना
पर लगा न कहीं उसका कोई निशाना

वो अपने बच्चो में खुश था बहुत
खोया था उनकी मुस्कुराहटों में

वो गुज़री उनके निकट से कई बार
पर न असर था कोई उसकी आहटों में

आखिर हुआ वही जिसके लिए ये कहानी लिखनी पड़ी मुझको
मिले नैन, हुए एक, प्रेम बंधन की कड़ी लगने लगी उनको

बस इतना मान लो कि इसी बात की देरी थी
फिर वो सब चीज़े जल्दी हुई  जो बेहद ज़रूरी थी

ख़ास सी लगने लगी आम सी उनकी ज़िन्दगी
हर बात हर चीज़ प्यारी हो गयी जब हुई इश्क़ की बंदगी

हर समां हर मंज़र हर पल खुशनुमा हुआ
ऐसा दिलकश एहसास पहले कब और कहाँ हुआ

वक़्त गुज़रा दिन महीने साल हुए
हर पल साथ रहने की तड़प में अब दोनों बेहाल हुए

चाहत होने लगी अब पल पल संग जीने की
हसने की संग रोने की हरदम खुश रहने की

पर कहते हैं हासिल मुक्कम्मल जहाँ नहीं मिलता
किसी को ज़मीन किसी को आसमान नहीं मिलता

प्रेम के बंधन टूटतेनहीं ये बात जानता ज़माना हैं
पर तोड़ दिए जाते हैं न इससे भी बेगाना हैं

अक्सर बेटी विदा होने पे अश्क बहाती जाती हैं
अपनों को छोड़ गैरो के संग जब घर बसाने जाती हैं

पर उसको रोना आया तो बस अपनी बेवफाई पे
शादी जो की अपनो को बचाने को जग-हसाईं से

न ये अंत हैं मेरी इस कहानी का न कोई शुरुआत हैं
बस इतना समझलो ये मेरे देश के हालत हैं

ऐसे ही हंसती खेलती बिटिया जब अपनों के लिए इतना कर देती  हैं
तो क्या अपने कुछ करे उस की ख़ुशी के लिए न इतनी सी औकात हैं

अपील नहीं न गुज़ारिश हैं न उम्मीद न आपसे कोई
कि ये सब बदलेगा और प्रेम पनपेगा कभी

बस सोचता हूँ तो लगता हैं बुरा कि कैसे जीने को मज़बूर हैं हम
मंज़ूर मौत अपनों की हैं ये कैसे मगरूर हैं हम

हाँ मैं अपने बच्चो को इतनी सी ख़ुशी ज़रूर दूंगा
की जीवन अपना वो खुद जिए और ख़ुशी मैं उनको ला दूंगा !!!!!!!!