मैं था भारत का एक किसान
हिन्दू ऑफ़ द हिन्दुस्तान
जी छोटे से गाँव में रहता था
कोई काम नहीं
वहा करता था
अरे काम वहा करता भी कैसे
काम नहीं कोई मिलता था
फिर एक दिन में इस शहर में आया
खूब की मेहनत खूब कमाया
एक दिन मुझको भा गयी इक सुन्दर सी छोकरी
बोंब कट से बाल थे उसके जैसे फूलों की टोकरी
दिन रात गुज़रते लम्हों में उनकी तस्वीर नज़र आती
अब हमें तो उनके हाथों में अपनी तकदीर नज़र आती
वैसे मैं शर्मीला था कोई प्रस्ताव ना रख पाया
सोचा वो प्रोपोसल दे दे पर वो भी ना दे पाया
फिर मेरे मित्र और उनकी सहेली ने मिलकर बात की
तब कही जाकर वो सुन्दर माया बनी हमारी श्रीमती
अब शादी के बाद जब हम दोनों विश्व भ्रमण पर निकले
घूम लिया सारा जहाँ और किये हर जगह उन्होंने घपले
एक रोज़ उन्होंने होटल का तोवेल चुरा लिया .
और इस विचित्र सी हरकत का मेनेजर ने पता लगा लिया
बोला होटल के तोवेल को महोदय घर पर नहीं ले जा सकते है
इसे यही पर छोड़ अभी आप यहाँ से जा सकते हैं
तो उनकी वजह से होना पड़ा मुझे वहां बड़ा शर्मिंदा
हा पर उन्होंने अब ये कसम थी खाई की "तोलिया नहीं चुरायेगी आईंदा"
तो गौर फरमाइयेगा
"पर बीवियों के दिमाग में कोई बात कहा असर करती है
और उलटे सीधे हुनर पे अपने सुबह शाम फक्र करती करती है "
अगली बार जब गए हम करने खरीदारी maal में
खुले आम चुराई साडी क्यों ना जाने हॉल में
बस mall के बाहर जाते वक़्त रेड लाइट जल गयी
और ये बात श्रीमती जी को मन ही मन में खल गयी
उनकी इन हरकतों में दुखी हो मैं पुनः गाँव में आ गया
फिर भी उनकी इस आदत में कोई सुधार ना हुआ
उन्होंने वहा भी नहीं छोड़ी अपनी आदत सदियों पुरानी
छोटी मोती हर चीज़ चुराई जैसे बोरो प्लस ऑफ़ हिमानी
हा महीने भर तो सहन की गाँव ने उसकी नादानी
फिर ऐसा कदम उठाया मैंने की ख़तम हो उसकी बेईमानी
अब उसे शहर में छोड़ आया और खुद गाँव में ही रहा
उसका ह्रदय हो जाये परिवर्तित ऐसा सिर्फ सोचता रहा
कुछ दिनों बाद शहर जब पंहुचा तो देख कर ये दंग था
की b m w से नीचे उतरी वो और मीडिया उनके संग था
बस चोरी करते करते वो नेताई में पद गयी थी
अच्छी खाशी उसकी बुद्धि थोड़ी सी अब सड़ गयी थी
अब मैं दिन भर ऑफिस में उनके बारे में सोचता रहता
क्यूँ की थी मैंने उनसे शादी स्वयं को ही कोसता रहता
फिर हिम्मत जुटाकर मैं बोला प्रिये ! राजनीति को त्याग दो
इस भारी दलदल में धसने से पूर्व ही भाग लो
पर चोरी से बेहतर राजनीति इस मर्म को उसने जान लिया
देश को पूरा लूट ही लेगी ऐसा मन में ठान लिया
और
मैंने ये जान लिया की इस देश में चोर का भविष्य क्या हो सकता है
पर बेचारा आम आदमी सिर्फ किस्मत पर अपनी रो सकता हैं
छोडो इस किस्मत और राजनीति को मिक्स मत करो
क्रिकेट और कोर्ट में फैसले की तरह कुछ फिक्स मत करो
अब इससे पहले की आप सब बोर हो जाए और महफ़िल में शोर हो जाए
ख़तम करूँ मैं अपनी कविता , क्यूँ ना हम सब भी चोर हो जाए
पर हम है भारत के श्रेष्ठ नागरिक इस पर गौर हमें नहीं करना है
चलते है "श्रेयस" इसी सन्देश के साथ कि चोर हमें नहीं बनना है ........