Thursday, December 30, 2010

Agli-pichli

कि आज बैठे बैठे ये बात दिल से निकली
वो कौनसी घडी थी जब नज़र थी मेरी फिसली

क्यूँ जिंदा हूँ मैं अब तक ये सोच कर हैरान हूँ
इतने सितम पे भी ना क्यूँ जान मेरी निकली

तब तो मोहित हो गए हम देख कमरिया पतली
आज उसी को कोसते है वो रूप ऐसे बदली

मनमोहनी वो आकर्षिणी, क्या नाज़ और  क्या नखरे थे
बस इन्ही सब बातों पर हम टुकड़े टुकड़े बिखरे थे

  

Friday, December 17, 2010

Chori Yaa Rajneeti

मैं था भारत का एक किसान
हिन्दू ऑफ़ द हिन्दुस्तान

जी छोटे से गाँव में रहता था
कोई काम नहीं वहा करता था

अरे काम वहा  करता भी कैसे
काम नहीं कोई मिलता था

फिर एक दिन में इस शहर में आया
खूब की मेहनत खूब कमाया

एक दिन मुझको भा गयी इक सुन्दर सी छोकरी
बोंब कट से बाल थे उसके जैसे फूलों की टोकरी

दिन रात गुज़रते लम्हों में उनकी तस्वीर नज़र आती
अब हमें तो उनके हाथों में अपनी तकदीर नज़र आती

वैसे मैं शर्मीला था कोई प्रस्ताव ना रख पाया
सोचा वो प्रोपोसल दे दे पर वो भी ना दे पाया

फिर मेरे मित्र और उनकी सहेली ने मिलकर बात की
तब कही जाकर वो सुन्दर माया बनी हमारी श्रीमती

अब शादी के बाद जब हम दोनों विश्व भ्रमण पर निकले
घूम लिया सारा जहाँ और किये हर जगह उन्होंने घपले

एक रोज़ उन्होंने होटल का तोवेल चुरा लिया .
और इस विचित्र सी हरकत का मेनेजर ने पता लगा लिया

बोला होटल के तोवेल को महोदय घर पर नहीं ले जा सकते है
इसे यही पर छोड़ अभी आप  यहाँ से जा सकते हैं

तो उनकी वजह से होना पड़ा मुझे वहां बड़ा शर्मिंदा
हा पर उन्होंने अब ये कसम थी खाई की "तोलिया नहीं चुरायेगी आईंदा"

तो गौर फरमाइयेगा

"पर बीवियों के दिमाग में कोई बात कहा असर करती है
और उलटे सीधे हुनर पे अपने सुबह शाम फक्र करती करती है "


अगली बार जब गए हम करने खरीदारी maal में
खुले आम चुराई साडी क्यों ना जाने हॉल में

बस mall के बाहर जाते वक़्त रेड लाइट जल गयी
और ये बात श्रीमती जी को मन ही मन में खल गयी

उनकी इन हरकतों में दुखी हो मैं पुनः गाँव में आ गया
फिर भी उनकी इस आदत में कोई सुधार ना हुआ

उन्होंने वहा भी नहीं छोड़ी अपनी आदत सदियों पुरानी
छोटी मोती हर चीज़ चुराई जैसे बोरो प्लस ऑफ़ हिमानी

हा महीने भर तो सहन की गाँव ने उसकी नादानी
फिर ऐसा कदम उठाया मैंने की ख़तम हो उसकी बेईमानी

अब उसे शहर में छोड़ आया और खुद गाँव में ही रहा
उसका ह्रदय हो जाये परिवर्तित ऐसा सिर्फ सोचता रहा

कुछ दिनों बाद शहर जब पंहुचा तो देख कर ये दंग था
की  b m w  से नीचे उतरी वो और मीडिया उनके संग था

बस चोरी करते करते वो नेताई में पद गयी थी
अच्छी खाशी उसकी बुद्धि थोड़ी सी अब सड़ गयी थी

अब मैं दिन भर ऑफिस में उनके बारे में सोचता रहता
क्यूँ की थी मैंने उनसे शादी स्वयं को ही कोसता रहता

फिर हिम्मत जुटाकर मैं बोला प्रिये ! राजनीति को त्याग दो
इस भारी दलदल में धसने से पूर्व ही भाग लो

पर चोरी से बेहतर राजनीति इस मर्म को उसने जान लिया
देश को पूरा लूट ही लेगी ऐसा मन में ठान लिया

और
मैंने ये जान लिया की इस देश में चोर का भविष्य क्या हो सकता है
पर बेचारा आम आदमी सिर्फ किस्मत पर अपनी रो सकता हैं

छोडो इस किस्मत और राजनीति को मिक्स मत करो
क्रिकेट और कोर्ट में फैसले की तरह कुछ फिक्स मत करो

अब इससे पहले की आप सब बोर हो जाए और महफ़िल में शोर हो जाए
ख़तम करूँ मैं अपनी कविता , क्यूँ ना हम सब भी चोर हो जाए

पर हम है भारत के श्रेष्ठ नागरिक  इस पर गौर हमें नहीं करना है
चलते है "श्रेयस" इसी सन्देश के साथ कि चोर हमें नहीं बनना है ........

Thursday, December 16, 2010

Flop Story

एक लड़का शर्मीला और सच्चा
पर करतूतों से नहीं था अच्छा

उसका एक ही close फ्रेंड था 
नेचर में जो सेम सेम था

एक दिन जब  उसकी नज़रे पार हुई 
एक लड़की से यु चार हुई 

दिन रात वो यु आहे भरता 
उसके बारे में सोचा करता

तभी साइड heroine की हुई एंट्री .
बोली उससे मेक  फ्रेंड मी

पर लड़के ने यु मना  किया कि  दिल लड़की का तोड़ दिया

अब वो तो उससे रूठ गयी
टूटा दिल लेकर चली गयी

उसने यह बात दोस्त को बताई
कि  कल एक लड़की उसके पास आई

थोड़ी सी थी वो घबरायी, फिर ज्यादा नहीं शरमाई
उसने मुझे किया प्रोपोज पर मेने नहीं कबूला रोज़

तब दोस्त को थोड़ी हसी आई .
बोला कुछ तो सीख ले भाई

जब लड़की ज्यादा नहीं सकुचाई
तो तू क्यों घबराता भाई

बोल दे उससे, क्यों डरता हैं
जिस लड़की पे तू मरता हैं
जा कल ही उससे बोल दे गर प्रेम तू उससे करता है

दोस्त की उसने बात को माना
राह में उस लड़की को पुकारा

लड़की ने सुन के अपना नाम
बोली - कैसे हैं पहचान

अब लड़का थोडा पास गया
मन की स्थिति को भांप गया

सुनकर उसके प्रश्नों की आहट
शुरू हुई थोड़ी घबराहट

भाग निकला वो बोल के सॉरी
मुलाक़ात रह गयी वो कोरी

अब वो अपने दोस्त से मिलने गया
और जाकर कहने लगा

फ्लॉप मेरी लव स्टोरी है
राजी नहीं वो छोरी है

यस she said  to me " please listen  "
but due to fear  i  could  not  listen

अब बेटा मुझको है अफ़सोस
ना नहीं है तुझमे कोई खोट

बात ये कोई ख़ास नहीं है बस ये तेरे बस की बात नहीं है

Dhokha

मोज़े हवा से फूलो के चेहरे उतर गए
गुल हो गए चिराग घरोंदे बिखर गए.

पेड़ो को छोड़ कर उड़े उनका ज़िक्र क्या
पाले हुए भी गैर की छत पे उतर गए

यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी जख्म भर गए

जो हो सके तो अब के भी सागर को लौट आ
साहिल के सीप स्वाति की बूंदों से भर गए

एक एक से अब पूछते फिरते है ये "श्रेयस"
वो ख्वाब क्या हुए वो मनाज़िर किधर गए

Saugaat

lauta rahe hai tujhko tere dil ka tukda aaj
ye na sochana ki wo kabhi mera dil na hua

tere  prem ki saugaat waapis kar raha hoo aaj
galatfahmi hai ye teri mujhko usse ishq naa hua

haa ye jaanta hu ki inaam lautaye nahi jaate
par tere dil ke khwaab ab humse sajaye nahi jaate

iski khwahisho ko jab pankh lag chuke hai
to khatm karke inko dil jalaye nahi jate

aisa nahi ki naa baandhe rakh saki mujhko iski dilkashi
humko pata hai ishq ke armaan kabhi lutaaye nahi jate

tune mujhko jo diya tere dil ki baat thi
aur tere ehsaan ab uthaye nahi jate

gujarish hai tujhse itni ki isko sambhal kar rakhna
apne dil ko amaanat meri maankar rakhna

baakabiliyat se isko le jayenge fir kabhi
"ShreyAs" ki aarzoo ko mat uchaal kar rakhna"

Meri Kavitaayen

मन के किसी कोने में कविताये जन्म लेती है, एकांत के विचारो को सरे आम जो कह देती है

एक नहीं कई भावो को बस एक ही में कह देती है
पल भर के विचारो को प्रतिपल के लिए कहती है 

हताश को आस ] निराश को आशा और रंगों को चमक देती है
भाषा को आभूषित कर हर बात पूरी कर देती है

सागर के ह्रदय में जितने रत्न छिपे होते है
कवि ह्रदय के सागर में उतने जतन छिपे होते है

कभी यादों की महक पर कभी प्रेयसी की झलक पर
कभी मुस्कुराने पर तो कभी रूठ जाने पर

कभी भावों की लहर पर कभी विचारो की डगर पर
कभी मद में दुबे हुए शायर की  धुन   पर

अपनों के खिलखिलाने पर गेरों के तिलमिलाने पर
कभी अपनी मुफलिसी पर कभी जाम छलक जाने पर

मन के किसी कोने में कविताये जन्म लेती है

Jaam

रस्ते पे हर ओर जाम बिखरे पड़े थे
हमने इक उठाया और पी के आ गए

बेवक्त हर ख्वाहिश को भी मिल गए थे जो मुकाम,
बस दीदार पे साहिब की सब भुला के आ गए

हर ख्वाहिश कब्रसार हुई उनके वास्ते , और वे करने बे-जुस्तजू हमको आ गए
ना कहा तो की नहीं उनकी जुस्तजू , और वे ज़माने भर में कहके हमको बेवफा गए

हद जन्नत में जाकर भी वो रह ना पाए
जहन्नुम में दाखिल "श्रेयस " जी के आ गए

पीने की लत को छोड़ चुके थे हम तो कभी से
आज क्यों बिखेर रस्ते में आप जाम आ गए

Tuesday, December 14, 2010

saakshatkar

किसी कवी ने कविता लिखी , कविता अत्यंत लोकप्रिय हुई
घर पहुंचे अनेको पत्रकार लेने उनका साक्षात्कार

दुर्भाग्य से कवि घर पर नहीं थे , पत्रकार इंतज़ार कर रहे थे
फिर अंदर से एक सन्देश आया कविवर लेने गए थे कार

वे न लौटे हो गयी शाम , हुए पत्रकार अत्यंत हताश
ये सोच कर की कल फिर आयेंगे , साक्षात्कार तो ले ही जायेंगे
पत्रकार सभी लौट गए लेकर मन में ऐसी आस

यहाँ कवि महोदय अपने जीवन के ख़ास लम्हों को भूना रहे थे
हर रोज़ नयी संगोष्ठी में अपनी कविताये सुना रहे थे

जिस दिन उनके दिल ने फिर अपने कवि मन में गोते लगाये
अपने कुटीर में उस दिन कविवर दौड़े दौड़े चले आये

आज पत्रकारों के चेहरे  पर जो आशा की थी आभा 
शायद ऐसी चमक को मैंने  कहीं ना था भांपा

सदियों से दफ़न जो होती है हर एक के मन में अभिलाषा
गर कोई तरकीब होती तो "श्रेयस"  तुमको  दिखलाता

खैर  हमारी कोई पूछे गुण कोई मेरे गाता
तो शायद इस जग के मेले में कोई मैं करतब दिखलाता

हां हम इस बात को भूल साक्षात्कार पर चलते है
कवि वर के जवाब से आज रूबरू मिलते है

ज्यों ही कवि आसीन हुए , हुई प्रश्नों की बोछार
पद्य रूप में देते गए कवि उत्तर सोच विचार

प्रश्न जो सरे पूछ लिए सम्पन्न हुआ अब साक्षात्कार
सारे के सारे पत्रकार हुए अब जाने को तैयार

अंत में जो एक प्रश्न किया क्या आप कभी चलाएंगे सरकार
कविवर बच कर निकल लिए कह कर करना है विराम